

लकड़ी की कृतियों में जान फूंकने वाला कलाकार
आजादी के ठीक 2 वर्ष पर्व 15/08/1945 में तुमसर महाराष्ट्र मे जन्मे श्रवण चोपकर ने अपनी शिक्षा हायर सेकेंडरी लेने के बाद मध्यप्रदेश के बिलासपुर से आई.टी.आई.की फिर भिलाई से बी. टी.आई.की पढ़ाई पुरी कर भिलाई इस्पात संयंत्र में 1965 से 2001 तक टेक्नीशियन पद पर रहे 2001 में इन्होने वी.आर.ले लिया चोपकर ने अपनी नौकरी के साथ-साथ अपने परिवार का भीं पालन पोषण बहुत अच्छे से किया और साथ ही साथ में अपनी कला को भी अनोखा व्यायाम दिया /
उन्होंने 1972 में कहीं एक लकड़ी से निर्मित सांखला देखी उन्होंने उसे क्या देखा जैसे भटके हुए राहगीर को मंजिल मिल गई हो यहां से इनकी जिन्दगी बदल गई अब 52 वर्षों के अपने इस सफर के दौरान उन्होंने जो कुछ बनाया वह अपने आप में अतुल्य है,इनके द्वारा बनाया गया सागोन की 2 फीट ऊंचा लकड़ी के एक टुकड़े को इस कदर सफाई से तराशा गया है कि वह 4 इन वन बन जाता है दरअसल 4 इन 1 सिर्फ एक शब्द नहीं इसमें देश के चारो धर्मो के धार्मिक इस्थलो का समावेश है फोल्ड होने वाली यह आकृति चर्च से गुरुद्वारा में और मस्जिद से मंदिर में बदल देते हैं चोकर जी के द्वारा हिंदू ,मुस्लिम सिख ,इसाई सभी धर्म को जोड़ने का संदेश दिया है जिसकी वर्तमान में देश, दुनिया में बहुत आवश्यकता है, चोपकर जी को राज्य स्तरीय पुरस्कार बिना ज्वाइंट वाले मदर एंड चाइल्ड के लिए मिला मात्र 18 इंच की पत्तियों को 3 महीने के कठिन परिश्रम से तैयार किया मातृ वात्सल्या के नौ रूपों को इस कृति में सहजता से दिखाई देती हैं जो देखने वालों को चकित कर देता है कई पुरानी बोतलो,रद्दी लड़कियों से अनेक आकृतियो का निर्माण करने वाले चोपकर ने1999 में कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के स्मरण करने की चाह में एक 9 गुना 1 फुट लंबी पट्टी से बिना जोड़कर 532 कुड़ियां वाली 102 फीट लंबी चैन बना दी चोपकर की एक अदुत्य कलाकार है,इन्होंने दिल्ली के कुतुर्मिनार के साथ साथ इण्डिया गेट की तरह एक कृति बनाईं किले को देखने से इसके दोनो तरफ जयपुर के विश्व प्रसिद्ध हवा महल के झरोखों को बनाया गया है ऊपरी मध्य भाग में जालीदार झरोखे दिखाई पड़ते हैं नीचे मध्य भाग में फतेहपुर सीकरी के ऐतिहासिक बुलंद दरवाजे का रूप दिया गया है जो इसे और अधिक आकर्षण बनाता है जो वास्तविकता का प्रतीक कराते हैं सबसे किनारे दोनों बाघों पर बिना जोड़ की कड़ियां जहां एक और गुलामी की जंजीरों को दर्शाती है वही दूसरी ओर यह चैन खुले रूप से माला या हार स्वरूप आजाद भारत का स्वागत करती प्रतीत होती है ,आस्था के क्षेत्र में भी इन्होंने बेजोड़ कला कृति बनाई है जिस तरह सभी देवों में सबसे पहले गणेश जी की पूजा होती है उसी तरह से चोपकर जी ने सबसे पहले गणेश जी की प्रतिमा बनाईं इसे आकर्षित बनाने के लिए गजानन के चौड़े माथे पर लकड़ी का तिलक एवं दो नेत्र बहुत सफाई के साथ लगाए हैं मूलत महाराष्ट्र के होने के बाद भी शिक्षा व नौकरी मध्य प्रदेश वर्तमान के छत्तीसगढ़ में हुई जहां छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है ,जो बल एवं बैलगाड़ी के बिना संभव नहीं है इसी को ध्यान में रखकर इन्होंने बेजोड़ बैलगाड़ी एवं बैल की रचना की इस पूरे बैलगाड़ी को दो फीट लंबे 1 फीट चौड़े 5 इंच मोटे दो सागोन की लकड़ी के टुकड़े से मात्र ढाई महीना के अमूल्य श्रम से बना चैन से जुड़े दोनो बैल के जुड़े को लकड़ी के अन्य टुकडे से मात्र 45 दिन मे बनाया इसके साथ-साथ इन्होंने मत्स्य कन्या व नाग कन्या सावन का झूला, शिव आराधना, लकड़ी के बेकार टुकड़ों को जोड कर बनी भारतीय ग्राम की झोपड़ी को लकड़ी के टुकड़ों से निर्मित किया कुतुबमीनार की आकृति जिसे 3 बाई डेढ़ इंच के आकार की सागोन कि लकड़ी से पांच मंजिला बनाई गई है, शीर्ष पर गुम्मंद 15 इंच का आकर्षक बना है/ मीनाक्षी मंदिर लालटेन, लकड़ी का तराजू, शो पीस टेबल , टेलीफोन चोपकर जी को भिलाई ,राजनंदगांव ,रायपुर व कोरबा में आयोजित उनकी कृतियों की प्रदर्शनी को विशिष्ट माना जाता है, आज भी लोगों के स्मृति से उनकी प्रदर्शनियां भूलें नहीं भूलाती है राजनादगांव में लायंस क्लब के द्वारा आयोजित एक प्रदर्शनी में स्वर्गीय मोतीलाल बोरा जी का कहना था की संपूर्ण भारतवर्ष में आप जैसे कलाकारों की गिनती मात्रा उंगलियों पर की जा सकती है /चोपकर जी को कर्मिष्ठा का परिचय भिलाई इस्पात संयंत्र में विभागीय नेहरू पुरस्कार 1983 एवं श्रम मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रदत्त राष्ट्र महत्व के विश्वकर्मा पुरुष्कार 1995 में मिला है ,आज वे 79 वर्ष के हो गए है उम्र के इस पड़ाव में वह अपनी जीवन संगनी श्रीमती सुनीता चोपकर के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं इस उम्दा कलाकार को बनाए रखने के लिए बी. एस.पी.प्रबंध को एवम सामाजिक संस्थाओं को भी सामने आना चाहिए ,अपनी कलाकृतियों के खजाने से उन्होंने उम्र के अपने इस पड़ाव में एक लालटेन लिया हुआ पंछी बनाया है, जो उड़ता हुआ प्रतीत होता है एवं उनकी इस वर्तमान स्थिति को दर्शाता है कि इस दुनिया में अब तेरा कोई नहीं है चल पंक्षी उड़ चल अकेला ही/
