
भिलाई। जो तहसीलदार और नायब तहसीलदार अक्सर लोगों के प्रदर्शन और आंदोलनों को समाप्त करवाते हैं, आज वे खुद अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। यह एक गंभीर स्थिति है जो यह दर्शाती है कि उनकी समस्याएँ सिर्फ औपचारिक नहीं, बल्कि बेहद महत्वपूर्ण हैं। हमने धरने पर बैठे इन अधिकारियों से बात करके उनकी पीड़ा को समझने की कोशिश की। उनकी बातों से पता चला कि वे जनता के कामों को पूरी संवेदनशीलता के साथ करना चाहते हैं, लेकिन संसाधनों की कमी उन्हें ऐसा करने से रोक रही है।

संसाधनों की कमी: एक बड़ी चुनौती
तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों के अनुसार, उनके काम की शुरुआत सुबह अपने निजी फोन पर संदेशों को जाँचने से होती है। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके क्षेत्र में कोई आपात स्थिति, दुर्घटना या प्राकृतिक आपदा तो नहीं हुई है। इसके अलावा, जनप्रतिनिधियों के प्रोटोकॉल और वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश भी उन्हें सुबह-सुबह ही देखने पड़ते हैं।
उनके पास सरकारी वाहन, ड्राइवर, कंप्यूटर, प्रिंटर, ऑपरेटर या क्लर्क जैसे बुनियादी संसाधनों की भारी कमी है। अचानक होने वाली सड़क दुर्घटनाओं या प्राकृतिक आपदाओं जैसी स्थितियों में उन्हें अपने निजी वाहनों का उपयोग करके घटना स्थल पर पहुँचना पड़ता है। इस दौरान उन्हें अपनी सुरक्षा का भी खतरा रहता है, क्योंकि उनके साथ न तो सुरक्षाकर्मी होते हैं और न ही कोई सहयोगी। कई बार ऐसे हमले या दुर्घटनाओं की खबरें भी सुनने को मिलती हैं।
काम का भारी दबाव और मानसिक तनाव
राजस्व अधिकारियों को लोक सेवा गारंटी अधिनियम के तहत समय-सीमा में कई काम करने होते हैं, जैसे निवास, जाति और आय प्रमाण पत्र बनाना। एक प्रमाण पत्र बनाने में सात से दस मिनट का समय लगता है, लेकिन उनके पास इंटरनेट, कंप्यूटर या ऑपरेटर की सुविधा नहीं होती। हर दिन सैकड़ों आवेदन आते हैं, जिससे उन पर मानसिक दबाव बढ़ जाता है।
इसके अलावा, नामांतरण, राजस्व अभिलेखों को दुरुस्त रखने, कोर्ट के काम, प्रोटोकॉल, चुनाव से जुड़े काम और जनदर्शन जैसे अनगिनत काम भी उन्हें करने पड़ते हैं। पर्याप्त स्टाफ और संसाधनों के अभाव में वे जनता को समय पर राहत नहीं दे पाते, जिससे जनता में विभाग के प्रति नाराजगी बढ़ती है।
प्रमुख माँगें: समाधान की राह
तहसीलदार और नायब तहसीलदार अपनी 17-सूत्रीय मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। उनकी कुछ प्रमुख माँगें इस प्रकार हैं:
पर्याप्त संसाधन और कर्मचारी: वे चाहते हैं कि उन्हें जनता के काम सरलता और समय पर करने के लिए पर्याप्त संसाधन और स्वीकृत पदों के अनुसार कर्मचारी दिए जाएँ। उनका कहना है कि संसाधन मिलने के बाद ही उनके काम का मूल्यांकन किया जाए।
पदोन्नति में सुधार: वे मांग कर रहे हैं कि डिप्टी कलेक्टर के पद पर सीधी भर्ती और पदोन्नति का अनुपात पहले की तरह 50:50 किया जाए। पिछली सरकार ने पदोन्नति का अनुपात घटाकर 40% कर दिया था, जिससे उनके प्रमोशन में देरी हो रही है
ग्रेड पे और राजपत्रित अधिकारी का दर्जा: नायब तहसीलदारों को राजपत्रित अधिकारी का दर्जा देने और वेतन विसंगतियों को दूर कर ग्रेड पे में सुधार करने की भी मांग है।
न्यायिक हस्तक्षेप पर रोक:
वे चाहते हैं कि उनके न्यायिक निर्णयों में बाहरी हस्तक्षेप न हो। भू-राजस्व संहिता के प्रावधानों के खिलाफ जाकर मंत्री, विधायक या वरिष्ठ अधिकारी उनके विरुद्ध कार्रवाई न करें।
तहसीलदारों ने किया रक्तदान
आज हड़ताल के दौरान, संघ के सदस्यों ने एक मानवीय पहल करते हुए रक्तदान शिविर का आयोजन किया। इसमें बड़ी संख्या में कर्मचारियों ने रक्तदान किया। संघ का कहना है कि भले ही वे अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन वे सामाजिक जिम्मेदारी को भी समझते हैं। फिलहाल तहसीलदारों के इस आंदोलन से यह साफ हो जाता है कि सरकार को उनकी जायज मांगों पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। ये अधिकारी अपने लिए कम और आम जनता की सुविधाओं के लिए ज्यादा मांग रहे हैं। यदि उनकी मांगों को पूरा नहीं किया गया, तो जनता के काम ठप हो जाएँगे, जिससे सुशासन की अवधारणा को चोट पहुँचेगी। यह एक गंभीर स्थिति है जिस पर सरकार को तुरंत सकारात्मक कदम उठाने चाहिए।
