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वीतरागिता के पथ की ओर अग्रसर करता पर्युषण महापर्व… का छटवां दिवस… जप दिवस…

दुर्ग वीतरागिता के पथ की ओर अग्रसर करता पर्युषण महापर्व… का छटवां दिवस… जप दिवस…

युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की कृपा से तेरापंथ समाज, दुर्ग को उपासिका द्वय का सानिध्य प्राप्त हुआ है। धर्मप्रेमियों में आध्यात्मिक उत्साह का वातावरण व्याप्त है।
वरिष्ठ उपासिका डा. वीरबाला छाजेड़ ने भगवान महावीर के जीवनी के कुछ अंशों को उद्धृत करते हुए अपनी आत्मा के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा दी। आपने कहा कि भगवान महावीर ने समता को आत्मसात कर आध्यात्म का शिखर प्राप्त किया था। आत्म स्वतंत्रता के लिए राजसी वैभव का परित्याग किया था। साथ ही आपने विभिन्न भावपूर्ण गीतिकाओं के माध्यम से धर्मसभा को आत्मकल्याण के लिए प्रेरित करते हुए, भगवान नेमीनाथ के जीवन प्रसंगों से करुणा की सीख दी। “सम्यक दृष्टि कैसे बने” पर निरंतर चल रही प्रवचन श्रृंखला में क्रोध – मान – माया से विरत रह सम्यक दृष्टि जागृत करने के लिए प्रेरित किया।
उपासिका श्रीमती साधना कोठारी ने “जप” की महिमा से धर्मप्रेमियों को अवगत कराते हुए जप के नियमों की विवेचना करते हुए बताया कि सही उच्चारण – मानसिक एकाग्रता से किया गया जप सुपरिणाम देते है। जैन धर्म में जप का बहुत महत्व है। श्रुत केवली भद्रबाहु स्वामी दृतीय के जीवनी का वर्णन करते हुए बताया कि उन्होंने विभिन्न कल्याणकारी श्रोतों – मंत्रों की रचना की थी।

प्रेक्षा प्रणेता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की रचित गीतिका

•”चैत्य पुरुष जग जाए…” और
•”ओ त्रिशला सुत महावीर…”
•”उठ जाग मुसाफिर…अब हो चला सबेरा…”
•”अरे इंसान एक दिन करना तुझे प्रयाण…”
का सामूहिक संगान हुआ।

साहित्यकार श्री रौनक जमाल धर्मसभा में पधारें, उन्होनें पर्युषण पर्व की आध्यात्मिक बधाई देते हुए प्रसन्नता व्यक्त की। रायपुर से पधारी श्रीमती इंदु लोढ़ा ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। श्री रौनक जमाल का बहुमान डा. वीरबाला छाजेड़ ने स्व रचित साहित्य से एवं सभा के अध्यक्ष देवेन्द्र बरमेचा ने भी साहित्य द्वारा सम्मान किया। संजय चौपड़ा ने श्री महेंद्र लोढ़ा एवं श्रीमती इंदु लोढ़ा का श्रीमती सपना श्रीश्रीमाल ने साहित्य द्वारा सम्मान किया। श्रीमती सपना श्रीश्रीमाल ने…•”जपते जपते ॐ अर्हम…” •”जप की महिमा है भारी…” का मधुर संगान किया। धर्मसभा में रायपुर, नंदनी – अहिवारा, सिकोसा से आए ज्ञान पीपासुओं के साथ ही बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओं ने धर्माराधना की।

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