दुर्गभिलाई
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रिटायरमेंट के बाद भी सपनों को पूरा करने की एक अनोखी मिसाल

story :- कैलाश बरमेचा की प्रेरणादायक कहानी, कैलाश बरमेचा, कमला मोटर्स एवम अनेको कंपनियों के प्रतिष्ठित मालिक हैं। पिछले 30 वर्षों से उन्होंने अपने व्यवसाय को समर्पण, मेहनत और ईमानदारी से चलाया। उनके पास हर ग्राहक के लिए मुस्कुराहट और हर चुनौती के लिए समाधान था। लेकिन अब, रिटायरमेंट की घड़ी करीब होने के कारण अजीब सी चुप्पी थी?

लोग कहते थे – “अब आराम करो। अब तो तुमने सब कुछ कर लिया।”
लेकिन कैलाश जी का मन कहीं और भटका करता था – वहाँ जहाँ सुरों के संगम की ध्वनि थी, जहाँ शब्दों की लय थी, जहाँ उनकी आत्मा की सच्ची आवाज़ बसी थी।

कैलाश जी की छुपी हुई कला – संगीत, लेखन और मंच का प्रेम – अब फिर से सिर उठाने लगा था।
लेकिन समाज की चुप्पी और ‘इस उम्र में क्या नया करना’ जैसे जुमलों ने उन्हें भीतर ही भीतर झगजोर कर रख दिया था।
कमला मोटर्स का मैनेजर – लक्की गुप्ता – सिर्फ एक कर्मचारी नहीं, बल्कि कैलाश जी का सम्मान करने वाला एक संवेदनशील युवा था।
वो अक्सर देखता था कि कैलाश जी ग्राहक से बात करते-करते कब गुनगुनाने लगते हैं, कब मेज पर उंगलियों से ताल देते हैं, और कब पुरानी यादों में खो जाते हैं।

एक दिन लक्की ने हिम्मत कर के कहा –
“सर, आपकी आंखों में आज भी सपने हैं… रिटायरमेंट के बाद आपको सिर्फ रेस्ट नहीं, रचनात्मकता चाहिए।
आपका संगीत, आपकी लेखनी… ये सब दुनिया को जानना चाहिए।”

कैलाश जी मुस्कराए, पर बोले, “अब किसके पास वक्त है? हिम्मत और संसाधन?”

लक्की ने कहा, “मेरे पास है – समय भी, सहयोग भी क्योकि मेरे दिल मे आप के लिए जगह भी है..
हम सब अब आप के मार्ग-दर्शन मे कमला मोटर्स संभाल लेंगे.
आप यहीं ऑफिस में बैठिए, मैं आपको एक रचनात्मक कोना बना देता हूँ।
हर महीने जो भी ज़रूरत हो, मैं आपको आर्थिक सहयोग भी दूंगा।”

यह सुनकर कैलाश जी की आंखों में नमी और दिल में नयी उमंग जाग उठी…….

सपनों की फिर से उड़ान

रिटायरमेंट के पहले ही दिन, कैलाश जी अपने ऑफिस में नहीं, बल्कि अपने नए ‘संगीत और लेखन कक्ष’ में बैठे थे – सामने एक डायरी, एक हारमोनियम ,लेपटाप और बहुत सारी भावनाएं।

हर दिन वह पुराने गीतों को दोहराते, नयी कहानिया लिखते और समाज की छोटी-छोटी बातों को अपनी कलम से बड़ा बना देते।

धीरे-धीरे उनकी रचनाएँ सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं।
लोग कमला मोटर्स मे अब सिर्फ मशीनों की खरीदारी ही नहीं, अब “कैलाश सर की कहानिया और “बरमेचा जी की बंदिशें” सुनने आने लगे।

उनके पुराने ग्राहक अब भी आते थे, पर अब मशीनों की बात के साथ-साथ वे कहते –
“ सर, पिछली कहानिया दिल को छू गई।”

आज कैलाश जी का हर दिन उत्सव भरा गुजरने लगा।

अब वे सुबह उठते हैं, संगीत साधना करते हैं, फिर शोरूम में लक्की के साथ बैठते हैं।
कभी मंच पर कविता पाठ करते हैं, कभी किसी स्कूल में बच्चों को मोटिवेशनल स्पीच देते हैं।

और सबसे बड़ी बात –
अब वे खुद से प्यार करते हैं, और खुद को समय देते हैं।
और अपनी लाडो को याद कर मंद मंद मुस्कुराते रहते।

संदेश —

“रिटायरमेंट ज़िंदगी से नहीं, सिर्फ नौकरी से होता है।
हर इंसान के भीतर एक कलाकार होता है – जिसे उम्र नहीं, बस मौका चाहिए।”

कैलाश बरमेचा की यह ‘दूसरी उड़ान’ हमें सिखाती है कि अगर आपके पास जज्बा है, तो आकाश फिर से आपका इंतज़ार कर रहा है…

इतना विचार आते ही सपनो की दुनिया से बाहर निकलते हुए पुनः निद्रा मे चले गये।

(इस कहानी के सभी पात्र वास्तविक है लेकिन विचार काल्पनिक है)

लेखक
कैलाश जैन बरमेचा

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